एहसास को आवाज़ की ज़रूरत होती है क्या,
शब्दों की तलाश में जब विचार ठहर जाए,
अशांत मन में जब सन्नाटा पसर जाए,
और सवालों की बिजली से दिल की धड़कन बढ़ जाए,
तो भरोसे की शीतल बारिश में खुद को भिगो लेना।
क्योंकि एहसास को कभी आवाज़ की ज़रूरत नहीं होती,
वो तो बस महसूस किया जाता है,
बंद आँखों से भी, और मौन होठों से भी।
तभी तो जो बात कहने से नहीं समझाई जा सकती,
वो एहसास में घुलकर अक्सर समझ आ जाती है।
भरोसे की उस बारिश से मन के वीराने में फूल खिल उठेंगे,
और उनकी भीनी-भीनी खुशबू तुम्हारे जीवन को महका देगी,
जहाँ शब्दों की कमी रह जाए, वहाँ एहसास अपना रंग भर देगा।
-Ojasweeta Sinha
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