एक अनसुनी  आवाज 
आधी रात में एक आवाज सुनी
दिल में कुछ हलचल मची।
ऐ दिल !तुझे शिकायत क्यों है ?
तेरे खातिर मैं बर्बाद हुई।
तू टूट गया
मैं रूठ गयी,
दिल और दिमाग की लड़ाई में
मैं खुद से ही हार गयी।
यूँ खामोश रह कर  सजा ना दे
मुझको डर -सा लगता है
खो ना दूँ जो मिला मुझे ,
पाने को जो मिला नहीं।
रो -रो कर मैं  सोती हूँ
जागकर याद ना आता कुछ.
दिल मेरा नादान है
पागल -सा  खामोश है।

नींद नहीं आती है मुझको
आँखों में है ख़ामोशी
दिल में है बेचैनी।
आधी रात को जगती हूँ
जगकर कुछ -कुछ लिखती हूँ ,
आता कुछ भी समझ नहीं
कलम यूँ ही घिसती हूँ.
-ओजस्विता 

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