मज़बूरी भी क्या चीज़ होती है
इंसान को कहाँ से कहाँ ले जाती है.
बेबसी भी इतना दर्द देता है ,
ना चाहते हुए भी इंसान को जीने पर मजबूर करता है।
हाँ मैंने देखा है ज़माने में,
रोते चेहरे को हँसकर दर्द छुपते हुए ,
अपने अरमान अपने सपनो का क़त्ल होते हुए,
सुख की चाहत में दुःख के दलदल में फसने वालों को।
मजबूर इंसान के मज़बूरी को मुनाफा समझने वालों को ,
सर पर हाथ रखने का बहना कर कमर में हाथ डालने वालों को
हाँ मैंने देखा है , रिश्ते के नाम पर कई नए रिश्ते बनाने वालों को
खामोशिया में सब कह देने वाली उन निग़ाहों को।
डर लगता है मुझे उस चीख से जो कभी सुनाई ही नहीं देती
डर लगता है मुझे उस दर्द से जो दिल में दफ़न रहता है
शायद,कुछ ऐसे भी दर्द होते है जिनका कभी जिक्र नहीं होता।
-ओजस्विता