क्यों है इतना अंतर
माँ मुझको बतला दो आज
कैसा है ये राज
मैं भी बच्चा,वो भी बच्चा
पर अंतर क्यों है इतना।
मैं खाता दूध -मलाई
उसे ना मिलती सुखी रोटी
मैं महलों में रहता हूँ
झोपडी को वह तरसता है।
धूप में मैं बाहर ना जाऊँ
वह धूप में ईंटे उठाता
बस्ता जो मैं उठाता हूँ
पीठ मेरी दुख जाती है
पर वह ईंटे कैसे  ढोए।
मेरे पास है कई जूते
पर वह खाली पैर घूमता
पैर छिलते नहीं क्या उसके
क्या उसे धूप नहीं लगती।
क्यों होता ऐसा हमारे समाज में
मैं भी बच्चा,वह भी बच्चा
क्यों है इतना अंतर।
वह न तो पढता है और न लिखता
सिर्फ दिन -रात करता है मजदूरी
उसे नहीं मिलते खेलने को खिलौने
फिर भी रहता है खुश अपनी दुनिया में
क्यों है इतना अंतर हमारे समाज में
मई भी बच्चा वह भी बच्चा। ....
-ओजस्विता  

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